भानगढ़ का किला # शॉर्ट स्टोरी चैलेंज #हॉरर
शॉर्ट स्टोरी चैलेंज
कहानी - भानगढ़ का किला
जॉनर - हॉरर
भानगढ़ का किला
हमारे देश में बहुत प्राचीन किले एवं हवेलियां हैं। हर शहर में मौजूद हैं। हर किला व हवेलीअपनी एक अलग कहानी बयान करता है । कई किले एवं हवेलियां हमारे हिंदू राजाओं के हैं और कई मुस्लिम राजाओं के हैं। कुछ बड़े-बड़े किलों एवं हवेलियों को सरकार ने अपनी हिफाज़त में ले रखा है। सरकार उसकी देखरेख करती है और समय-समय पर उसकी मरम्मत कराती रहती है।
ऐसा ही एक हवेली जयपुर के छोटे से शहर अलवर में स्थित है। इस हवेली को भानगढ़ के किले के रूप में जाना जाता है। क्योंकि इसका डिजाइन एक किले के आकार का है। यह किला कई वर्षों से लोगों के कौतूहल का विषय बना हुआ है । इस किले से जुड़ी बहुत सारी कहानियां है। इस किले को 'भूतों का गढ़' भी कहा जाता है । ऐसा माना जाता है कि इस किले पर एक श्राप है जिसकी वजह से यहां पर भूतों का निवास है । इसलिए पुरातत्व विभाग ने यह हिदायत जारी करी कि सूर्यास्त के बाद कोई भी पर्यटक इस किले में नहीं घूम सकता। बहुत से लोगों ने इसके राज़ को खोलने की कोशिश करें परंतु सभी नाकाम रहे।
सत्येंद्र को बचपन से ही आर्कियोलॉजिकल साइट्स देखने में बहुत मज़ा आता था। इसलिए उसने आर्कियोलॉजिकल स्टडीज़ का कोर्स किया। उसने भी भानगढ़ के किले के बारे में बहुत सुना था। इत्तेफाक से उसकी नौकरी अलवर के पुरातत्व विभाग में लग गयी।
वहां भी उसने अपने सह - कर्मचारियों से उस किले के भूत के बारे में बहुत कुछ सुना। क्योंकि वह इसमें विश्वास नहीं करता था इसलिए उसने सोचा कि उसे खुद अंदर जाकर देखना होगा।
एक रात जब सत्येंद्र की ड्यूटी किले के बाहर थी तो उसने सोचा कि आज ही अच्छा मौका है वह अंदर जा सकता है। वह रात के अंधेरे में चौकीदार की नजरों से बचते बचाते किले के अंदर पहुंच गया। रात बहुत गहरा गई थी। उसने टॉर्च जलाई ।और किले के अंदर चल पड़ा। रात के समय किला बहुत ही भयानक लग रहा था। वह धीरे-धीरे किले के अंदर घुस गया। अब वह किले के उस हिस्से में खड़ा था जहां पर सबसे सुंदर नक्काशी का काम हो रखा था। उसने किले की दीवारों पर टॉर्च मारी। तभी उसे यह एहसास हुआ कि किले की दीवारें खुद-ब-खुद जगमगा रही हैं। यह देख वह बहुत हैरान हुआ कि दीवारों के अंदर से खुद ही रोशनी निकल रही थी। उसने दीवारों के नज़दीक जाकर उन्हें छूने का प्रयास किया तो उसको एक ज़बरदस्त झटका लगा। काफी समय तक उसके हाथों में जलन होती रही। तभी उसे थोड़ी दूर से घुंघरूओं की आवाजें में आने लगीं।
वह ध्यान से उस आवाज़ का पीछा करते हुए उस तरफ चल पड़ा। वह आवाज़ उसे एक बहुत बड़े कमरे की तरफ ले गई जो उस ज़माने में राजा का मुख्य महल हुआ करता था। जब वह उस महल के अंदर घुसा तो वहां का नज़ारा देखकर हैरान रह गया। पूरा महल रोशनी से जगमगा रहा था। चारों तरफ दीए ही दीए जल रहे थे। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि उसे उस महल में लोग दिखाई दे रहे थे। बहुत सारी दास - दासियां वहां घूम रहीं थी। पूरे महल को एक दुल्हन की तरह सजा रखा था। ऐसा लग रहा था मानो किसी की शादी का फंक्शन चल रहा हो।
सत्येंद्र ने जब वहां लंबे चौड़े पहलवान जैसे सिपाही देखे तो उन्हें देख वह डर गया और एक खंभे के पीछे छुप गया। तभी एक पहरेदार ने राजा और रानी के आने की घोषणा की। उनकी आते ही ढ़ोल बजने लगे और दासियां फूलों की वर्षा करने लगीं। राजा और रानी अपने अपने सिंहासन पर विराजमान हो गए।
सत्येंद्र ने महल में नजर दौड़ा कर देखा तो उसने पाया कि वहां बहुत सारे लोग भी मौजूद थे जो शायद उस राजा की प्रजा थी। राजा के सिंहासन के सामने बहुत सारे छोटे सिंहासन थे जिन पर बहुत से मंत्री बैठे हुए थे। सत्येंद्र ने नजरें उठाकर देखा तो ऊपर पर्दों के पीछे कई रानियां बैठी हुई थीं। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसे लग रहा था कि यह सब एक छलावा है। वह जैसे ही खंभे के पीछे से निकल आगे बढ़ने को हुआ, तो पहरेदार ने राजकुमारी के आने की घोषणा कर दी।
सत्येंद्र की नजरें द्वार पर गईं तो उसने देखा की एक बहुत ही सुंदर और आकर्षक सी लड़की राजकुमारी के वेश में चली आ रही थी। सत्येंद्र ने इससे पहले कभी उससे ज़्यादा खूबसूरत लड़की नहीं देखी थी। वह उसे देख मंत्रमुग्ध हो गया और वहां खड़े हो उसे निहारता रहा।
राजकुमारी के आते ही दासियों ने फूलों की वर्षा प्रारंभ कर दी। राजकुमारी के सुगंधित इत्र से सारा महल सुगंधित हो गया। कुछ ही पलों में पहरेदार ने किसी राज्य के राजकुमार के आने की घोषणा करी। उस राजकुमार के आते ही सब उठ खड़े हुए और फिर से दासियों ने उस पर फूलों की वर्षा करी।
सत्येंद्र को अब सब समझ में आ गया था। उस दिन राजकुमार और राजकुमारी का विवाह होने वाला था। उसे अभी भी यही अनुभव हो रहा था कि यह सब जो उसे दिख रहा है वह एक छलावा है। पर वह उस राजकुमारी के रूप सौंदर्य से इतना मोहित हो गया था कि वहां खड़े होकर उसे कुछ देर और देखना चाहता था।
शादी की रस्में प्रारंभ होने जा रही थीं। राजकुमार और राजकुमारी दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने वरमाला लिए खड़े थे। पुरोहित के आग्रह पर राजकुमारी जैसे ही राजकुमार को वरमाला पहनाने वाली थी कि कुछ सिपाहियों ने सत्येंद्र को घेर लिया और शोर मचा दिया।
सबका ध्यान खंबे के पीछे खड़े सत्येंद्र पर पड़ा। शादी की रस्मों को रोक दिया गया। सिपाही सत्येंद्र को खींचते हुए बाहर निकाल लाए। सत्येंद्र चीख - चीख कर कह रहा था,
" तुम सब लोग एक झूठ हो छलावा हो। मैं तुम्हारे इस छलावे में नहीं आऊंगा। मुझे छोड़ दो और मुझे जाने दो।"
" तो यही है वह जिसकी निगाह हमारी राजकुमारी पर थी।" राजा ने अपनी तलवार उठाते हुए कहा।
" हां महाराज, यही है वह मनुष्य। खंभे के पीछे खड़े होकर हमारी राजकुमारी को देख रहा था ।अब आप हुक्म दीजिए इसके साथ क्या करना है।" मंत्री बोला।
"अरे आप यह कैसे कर सकते हैं? आप सब लोग तो अब हैं ही नहीं । आप सब तो मरे हुए लोग हैं। मरे हुए कैसे किसी को मार सकते हैं?" सत्येंद्र ने चिल्लाकर बोला।
तभी एक सिपाही ने सत्येंद्र पर कोड़े बरसाने शुरू कर दिए , "महाराज से चिल्ला कर बात करता है।"
"सिपाहियों इसे ले जाओ और जलती अंगारों में फेंक दो।यही इसका अंजाम होगा।" राजा ने अपने सिपाहियों को हुक्म देते हुए कहा।
तभी राजकुमारी बीच में बोल पड़ी, "नहीं महाराज, इसको इतनी आसान मौत नहीं देनी चाहिए। इसको सजा मैं दूंगी।"
सत्येंद्र को अभी भी समझ में नहीं आ रहा था कि जो कुछ भी उसके साथ हो रहा है वह सच है या छलावा है। उसे लगा कि यदि वह किसी तरह इस महल से बाहर कदम रख ले तो वह बच सकता है। तभी उसने सिपाहियों को धक्का देते हुए मुख्य द्वार की तरफ भागने की कोशिश करी। पर वह असफल रहा। सिपाहियों ने उसे फिर से पकड़ लिया और इस बार बेड़ियों में जकड़ दिया।
उसने राजकुमारी को अपनी तरफ आते हुए देखा।
वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया," मुझे क्षमा कर दो । मुझे जाने दो।"
"तुमने जो किया है वह पाप है ।और पाप की माफ़ी नहीं होती उसकी सिर्फ सज़ा होती है।" राजकुमारी गुस्से से बोली।
फिर राजकुमारी ने सिपाहियों से उसपर खूब कोड़े बरसवाए। वह चीखता रहा और सिपाही कोड़े मारते रहे।
उसे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था कि क्यों वह इस किले का राज़ जानने यहां आ गया। क्यों उसने अपने सहयोगियों की बात नहीं मानी।
" सदियों से मैं राजकुमार से विवाह करने की राह देख रही थी। आज वह शुभ घड़ी आई थी। पर तुम जैसे दरिंदे ने आकर फिर से रंग में भंग डाल दिया। पर आज मैं तुम्हारी यह चाल कामयाब नहीं होने दूंगी। आज मैं यह विवाह संपन्न करके ही रहूंगी। आज मुझे कोई नहीं रोक सकता।
"
सिपाहियों ! गर्म लोहे की सलाखें लेकर आओ! इसकी नज़र जब से मुझ पर पड़ी है तब से हमारे महल का अनर्थ ही हुआ है। आज मैं इसकी इन नापाक नज़रों को ही खत्म कर दूंगी।" राजकुमारी ने रौद्र रूप धारण करते हुए कहा।
सिपाही गर्म लोहे की सलाखें ले आए। सत्येंद्र को सलाखों से बांध दिया गया। राजकुमारी के आदेश पर सिपाही गर्म लोहे की सलाखें लेकर उसकी तरफ बढ़े। वह झटपटाने लगा पर क्योंकि उसको बांध रखा था इसलिए वह कुछ नहीं कर पा रहा था। सिपाहियों को अपनी तरफ बढ़ते देख सत्येंद्र के हाथ - पैर फूल गए। वह पसीने से भीग गया। सलाखों को अपने इतने करीब देख उसके मुंह से चीख निकल गई, " मुझे माफ कर दो। मैं कभी यहां दोबारा नहीं आऊंगा। मुझे मत मारो।"
तभी उसे किसी के चिल्लाने की आवाजें आईं, " साहब सुबह हो गई। उठ जाइए। आप यहां गेट के पास क्यों सोए हुए हैं?"
सत्येंद्र की नींद टूटी ।उसने देखा कि वह किले के गेट के पास लेटा हुआ है। वह सकपका कर उठा और वहां के गार्ड से पूछा कि क्या हुआ था ? तब गार्ड ने बताया कि जब वह सुबह ड्यूटी पर आया तो उसने उसे वहां गेट के पास सोते हुए पाया।
सत्येंद्र को इतना तो याद था कि वह रात को किले के बाहर ड्यूटी पर था। पर उसके बाद उसे कब नींद आई, वह कब वहां पहुंचा उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था।
हो सकता है शायद उसने कोई सपना देखा हो। पर उसने जो भी देखा ऐसा लग रहा था कि वह उस समय वहां था और जो कुछ भी उसके साथ हुआ वह सच था।
वह वापस अपने क्वार्टर पर आ गया और सारा दिन उस सपने के बारे में सोचता रहा। वह अभी भी यह समझ नहीं पा रहा था कि वाकई में उसने कोई सपना देखा था या सच में वह किले के अंदर गया था और उन मृत लोगों को जीवित शरीर में देखा।
पर जो भी था, आज उसने अपने आप से एक वादा किया कि अब वह कभी भी भानगढ़ के उस किले के अंदर जाने के बारे में नहीं सोचेगा। वह राज़ जो भानगढ़ के किले से जुड़ा हुआ है वह राज़ ही रहे तो अच्छा है। शायद इसी में सभी की भलाई है।
समाप्त
🙏
आस्था सिंघल
#शॉर्ट स्टोरी चैलेंज
Anam ansari
19-Apr-2022 11:03 AM
बहुत अच्छा भाग
Reply
Shrishti pandey
18-Apr-2022 02:40 PM
Nice
Reply
Gunjan Kamal
18-Apr-2022 02:17 PM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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